जीवन धागा
कविता: जीवन धागा
कहे राजेन्द्र, क़ि, इंसान
के, जन्म और,
मृत्यू के,
बीच का सफ़र,
कहलाता, जीवन धागा।
धागे के, एक सीरे पर,
होता जन्म,
तो, दुसरे सीरे पर,
होता,मृत्यू का भाग आधा।
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गर्, दोनों सीरों के बीच,
जीवन में, पाना है,
सब का प्यार, ज्यादा।
तो, उसके लिए, रखना
है, ये ध्यान, क़ि,
जीवन हो, सीधा, साधा।
साथ में, सब के साथ,
उचित हो व्यवहार,
और, बनी रहे, मर्यादा।
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जीवन धागे में, पिरोये
गए हों
अच्छे कर्मो के पुष्प,
और, उस माला का,
प्रभू चरणों में हो, अर्पण।
जीवन धागे से, रफ़ू हों,
लोगों के,
दुःख दर्द के, जख़्म,
और, आत्मा का,
हमेशा, साफ़ रहे, दर्पण।
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कहे राजेन्द्र, क़ि, जग
को, संत कबीर भी,
कह गए, एक बात प्यारी।
अब, राजेन्द्र से, ये बात
भी, सुन ले दुनिया सारी।
कहे कबीर, क़ि, जीवन
धागे से बुने, कर्मों
के ताने बाने से,
बनती, एक चादर, न्यारी।
ओढ़ के, उस चादर को,
राम जी के द्वारे,
दुनिया, जाती सारी।
बस, रखना है, ये ध्यान,
क़ि, ये चादर,
किसी भी दाग से,
मैली न हो जावे, थारी।
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कहे राजेन्द्र, क़ि, बस,
फिर क्या... ...???,
फिर, रामजी पर,
छोड़ देना,
तू, अपनी चिंता, भारी।
तब, राम जी भी,
कर जावेंगे, तेरे
लिए, कोई लीला न्यारी।
तेरी, मज़े से, बीत
जावेगी, जिन्दगी सारी।
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जग में भी, हो जावेंगे,
तेरे से, कुछ अच्छे, काम।
प्रेम से बोल, जै सिया राम।
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कविता: राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
Bahut badiya
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